चीन के प्रधानमंत्री ली केचियांग की भारत यात्रा को कई मायनों में अभूतपूर्व व ऐतिहासिक घोषित करने वालो की कमी नहीं है । यह कहा जा रहा है कि नये चीनी प्रधानमंत्री ने अपनी पहली विदेशयात्रा के लिए भारत को चुना, जिससे वह पूरे विश्व कों संकेत दे रहे हैं कि भारत को कितनी अहमियत देते है । और संयोग यह है कि कुछ दिन पहले लद्दाख वाले इलाके में दौलत बेग ओल्डी के पास सीमा विवाद के कारण युद्ध के आशंका हो रही थी । और इस बात की आशंका थी कि 1 9 6 2 की दुखदायी त्रासदी कभी भी ताज़ा हो सकती है ।
चीनी प्रधानमंत्री ने अपनी इस यात्रा के दौरान यह बात कही है कि लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद का निपटारा वह शांतिपूर्ण ढंग से करना चाहते हैं और इस काम के लिए कारगार मशीनरी की व्यवस्था की जानी चाहिए । मुद्दा यह है कि यदि सीमा विवाद भारत के साथ इतने लम्बे समय से चला आ रहा है तो उसकी जिम्मेदारी क्या अकेले भारत की है ? दूसरा सवाल कही चीनी प्रधानमंत्री यह तो संकेत नहीं कर रहे है कि हाल की तनाव बढ़ाने वाली भड़काऊ सैनिक कार्रवाई के लिए भारत खुद जिम्मेदार था ?
50 वर्ष पहले सिर्फ सीमा तक सीमित नदी जल विवाद आज कहीं विकराल रूप ले चुका है । इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत और चीन के बीच हितों का टकराव ब्रम्ह्पुत्र नदी पर एक बड़े बांध के निर्माण तक सिमटा हुआ नहीं है । भविष्य में हमारी ऊर्जा सुरक्षा को भी चीन एक बड़ी सीमा तक बंधक बना चुका है । हर जगह वह तेल -गैस के मामले में हमें पछाड़ता रहा है । जितने सुनियोजित ढंग से चीन ने भारत के गले में मोतियों की माला पहनायी है , उसे दोस्ती का उपहार समझना एक भारी भूल होगी ।
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